Wednesday, January 23, 2019

"कहाँ चला रे, वहां कौन तेरी राह तके रे" फ़िल्म हरे कांच की चूड़ियां

by


Shyam Shankar Sharma 



इस संसार मे कौन किसका इंतजार करता है?राह तकता है?सब स्वार्थों के संबंध है।स्वार्थ सिद्ध हुए आपकी राह कौन तकेगा?जीवन के अनुभव तो यही व्याख्या करते है। महान निर्माता,निर्देशक व कलाकार श्री किशोरसाहू की फ़िल्म हरे कांच की चूड़ियां 1967 में प्रदर्शित हुई थी।इस फ़िल्म में किशोरसाहू ने अपनी पुत्री नैना साहू को प्रथम बार फिल्मी पर्दे पर मुख्य अभिनेत्री के रूप में अवसर दिया था,इस फ़िल्म के नायक विश्वजीत थे।नैना साहू का देवलोकगमन हाल ही में हुआ है।समय चक्र रुकता नही प्राणी आते रहते है जाते रहते है किन्तु इतना अवश्य है कि किशोरसाहू ने सदा सदा के लिए फिल्मी इतिहास में नैना साहू का नाम जरूर जोड़ दिया।इस फ़िल्म के कारण वो सदा याद की जाती रहेंगी!इसके पीछे बहुत बड़ा कारण है,शंकरजयकिशन व किशोरसाहू के संबंध अत्यन्त प्रगाढ़ थे,तो स्वाभाविक था की शंकरजयकिशन को ही उन्होंने फिल्म हरे कांच की चूड़ियाँ सौपी।इस फ़िल्म का संगीत इतना लाजवाब था कि 52 वर्ष बीत जाने के बाद भी इसके गीतों को सुना जाता है।फ़िल्म के सभी गीत फ़िल्म के टाइटल की भांति अत्यन्त मधुर थे।यह फ़िल्म शंकरजयकिशन के संगीत के कारण ही पहचानी जाती है।किंतना सुखद आश्चर्य है सायरा बानो,हेममालिनी,नैना साहू आदि कई अभिनेत्रियों ने शंकरजयकिशन के संगीत के सहारे ही अपना कैरियर आरम्भ किया।जैसा कि आज मैंने लिखा था" मानव जाति के इतिहास का प्रथम दैवीय संगीत का दस्तावेज है--शंकरजयकिशन।उनके संगीत में जीवन के प्रति समग्र दृष्टि उपलब्ध है तो प्रकृति से तादात्यम का संदेश है।शंकरजयकिशन के संगीत में ब्रह्म का रहस्य छिपा है।शब्द और संगीत का चोली दामन का नाता है।शब्द शरीर है,संगीत सूक्ष्म शरीर है,सूक्ष्म शरीर शब्दो के संग समस्त ब्रह्मांड में विचरण कर सकता है"।
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इस फ़िल्म के लोकप्रिय गीतों से सभी वाकिफ है,किन्तु शारदा जी के गाये एक अत्यंत खूबसूरत गीत से ज्यादातर शंकरजयकिशन प्रेमी अनभिज्ञ है।इस गीत को हेलेन व विश्वजीत पर फिल्माया गया था।
शारदा जी की आवाज का आकर्षण बहुत ही प्यारा है,ऐसा लगता है संध्या बेला में सुदूर वादियों में पक्षी चहचाहे रहे हो।यह बात अलग है की शारदा जी का जितना प्रतिरोध हुआ उतना किसी के साथ नही हुआ!उसके बावजूद भी आज वो अपनी विशिष्ठ आवाज के कारण करोड़ो शंकरजयकिशन प्रेमियों के दिलो में अपना स्थान बनाने में सफल रही जो एक इतिहास है जो अमिट है।शारदा जी के लिए प्रथम गीत शैलेन्द्र जी ने ही लिखा था,जिसने इतिहास बनाया।जब भी उद्यानों में तितलियों को उड़ते देखते है तो शारदा जी की आवाज कानो में मिश्री सी घोल जाती है।फ़िल्म हरे कांच की चूड़ियाँ में शैलेन्द्र जी ने एक ख़ूबसूररत गीत लिखा था,जिसे शारदा जी ने गाया, जिसे आलोचक हल्का फुल्का बता सकते है जो है नही, इस प्रकार है....
कहाँ चला रे, वहां कौन तेरी राह तके रे
हमको इतना बता जा..
कहाँ चला रे!
कौन दूर नगरी की और से,खिंचे तुझे जादू की डोर से
बांध लिया जिसने तेरा जिया,बड़े बड़े नयनो की डोर से
कहाँ चला रे!
झूम झूम झोंका बहार का,तार छुए मन के सितार का
में हूँ वो कली, जिसको अभी अभी छेड़ गया मौसम बहार का
कहाँ चला रे...?
आज तुझे अपना बनाऊंगी, प्रीत रीत तुझको सिखाऊंगी
एक बार नज़र मिला के देख ले,दिल तेरा में लेकर ही जाऊंगी
कहाँ चला रे...?
इस गीत में विभिन्न रंग है,फिल्मी हिसाब से सहनायिका नायक को अपनी ओर आकर्षित करने की चेष्ठा कर रही है किंतु ऐसे गीतों में भी शैलेंद्र अपनी बात कह देते थे!
वहां कौन तेरी राह तके रे?
हम सभी आखिर कहाँ जा रहे है?कौन हमारी राह देख रहा है?जीवन की राह पर तो मृत्यु ही प्रतीक्षा करती है जिसमे स्थायित्व है ओर सभी इंतज़ार तो काल्पनिक है,अल्पकालिक है।शैलेन्द्र जी ने शायद इसी गीत का मर्म फ़िल्म गाइड में रखा..वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहाँ?
अब शैलेन्द्र प्रकृति की ओर बढ़ते है जिसमे प्यार का सौंदर्य बोध है,बयार के झोंके है जो मन के सितारों को झंकृत कर रहे हैओर उस कली को अभी अभी बहार का मौसम छेड़ गया है।गीत का फिल्मांकन कैसा भी हो शैलेन्द्र जी उसमे भी तत्व बोध का ज्ञान कराते थे।टपोरी गीतों का युग शैलेन्द्र जी के बाद ही आरम्भ हुआ!गीत के अंत मे सहनायिका कहती है..दिल तेरा में लेकर ही जाऊंगी!यह उसका विश्वास है।मंज़िल पर फतह पाने से पहले स्वयं पर विजय प्राप्त करनी होती है,आशा मन का दीपक है,जो उसे राह दिखाता है।जिंदगी उन्ही का साथ देती है जो हर पल आशा की डोर थामे रहते है,आशा हम सभी के जीवन की प्रेरणा होती है,जीने का आधार होती है।अब आप कल्पना कीजिये शैलेन्द्र जी ने किस प्रकार सरल शब्दों में एक ही गीत में तीन बातें हमारे सामने रख दी है।
प्रथम,उन्होंने मुखड़े में जीवन दर्शन रखा है---द्वितीय,उन्होंने यौवन का संबंध किंतनी खूबसूरती से प्रकृति के साथ जोड़ा है---तृतीय,उन्होंने आशा और निश्चय को जीवन का आधार माना है।
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यही तीन कथ्य इस सम्पूर्ण गीत का सार है जिसको शंकरजयकिशन का संगीत बहुत ऊंचाइयों पर स्थापित करता है।यह साधारण नही अपितु असाधारण गीत है।यह गीत शारदा जी के अन्य गीतों से हटकर भी है!शंकरजयकिशन ने उनकी अनोखी दैवीय आवाज को दूसरे रूप में प्रस्तुत किया है जो चित्ताकर्षक है,मनभावन है।शारदा जी जैसी आवाज सदियों में उत्पन्न होती है,राजश्री प्रोडक्शन के सर्वे सर्वा श्री ताराचंद बढ़जात्या भी यही कहते थे।हमारा दुर्भाग्य है की हमारे देश मे प्रतिभाओं का गला घोंटा जाता है किन्तु शारदा जी भाग्यशाली थी कि उनके साथ दृढ़ प्रतिज्ञ शंकर जी(जयकिशन जी) थे।तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी वो शारदा जी से 80 के लगभग गीत गंवाकर ही रहे जो हिंदी फिल्मी संगीत में सदा जगमगाते रहेंगे।यह शंकर जी की शारदा जी मे विश्वास की अदभूद मिसाल है जिसे वह इतिहास में अंकित कराने में सफल रहे।


Shyam Shanker Sharma
Jaipur,Rajasthan.

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